Wednesday 24 April 2013

How to change life

जिद जिसने बदल दी जिंदगी
Cover story: august 2012
जिद नाम है उस हौसले का जिसमें नामुमकिन को मुमकिन बनाने का जुनून हो। बिरले ही होते हैं ऐसे जिद्दी लोग और उनके मजबूत इरादों के सामने दुनिया घुटने टेकने को मजबूर होती है। लगभग 1200  आविष्कार करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन की प्रतिभा को उनके शिक्षक भी पहचान न सके। दिन-रात कल्पना की दुनिया में खोए रहने वाले एडिसन को वे मंदबुद्धि मानते थे। इसी आधार पर उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। निर्धन परिवार में जन्मे एडिसन  ट्रेन में अखबार  बेच कर गुजारा करते थे। बिजली के बल्ब का आविष्कार करने के दौरान उनके सौ से भी ज्यादा  प्रयास विफल हुए। लोगों ने उनका बहुत मजाक उडाया और उन्हें भविष्य में ऐसा न करने की सलाह दी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। अंतत:  जब बल्ब की रौशनी से दुनिया जगमगा उठी तो लोग हैरत में पड गए। एडिसन को अपनी कोशिशों पर पक्का यकीन था। इसीलिए वह अडिग रहे। आसान नहीं होता अपनी बात पर अडिग रहना, पर जिसके इरादों में सच्चाई हो, उसे दुनिया की कोई भी ताकत झुका नहीं सकती।
हौसले की होती है हमेशा जीत
जब भी दृढ इच्छाशक्ति की बात निकलती है तो दुष्यंत कुमार का यह शेर हमें बरबस याद आ जाता है- कैसे आकाश में सूराख हो नहीं सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों..। साधनों की कमी की शिकायत करते हुए खुद कोई प्रयास न करना तो बेहद आसान है। ज्यादातर लोग करते भी यही हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी इच्छाशक्ति ही उनकी सबसे बडी पूंजी होती है। बिहार के गया जिले के छोटे से गांव गहलौर  के दलित मजदूर दशरथ मांझी की जिद के आगे पर्वत को भी झुकना पडा। उन्होंने राह रोकने वाले पहाड का सीना चीर कर 365  फीट लंबा और 30  फीट चौडा रास्ता बना दिया। दरअसल पहाडी का रास्ता बहुत संकरा और उबड-खाबड  था। उनकी पत्नी उसी रास्ते से पानी भरने जाती थीं। एक रोज उन्हें ठोकर लग गई और वह गिर पडीं। पत्नी के शरीर पर चोट के निशान देख दशरथ को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसी दम ठान लिया कि अब वह पहाडी को काटकर ऐसा रास्ता बनाएंगे, जिससे किसी को भी ठोकर न लगे। वह हाथों में छेनी-हथौडा लेकर पहाड काटने में जुट गए। तब लोग उन्हें पागल और सनकी समझते थे कि कोई अकेला आदमी पहाड काट सकता है भला! .पर उन्होंने अपनी जिद के आगे किसी की नहीं सुनी। वह रोजाना सुबह से शाम तक अपने काम में जुटे रहते। उन्होंने 1960  में यह काम शुरू किया था और इसे पूरा करने में उन्हें 22  वर्ष लग गए। ..लेकिन अफसोस कि उनका यह काम पूरा होने से कुछ दिनों पहले ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। वह अपनी सफलता की यह खुशी उनके साथ बांट न सके। उनकी इस कोशिश से ही बेहद लंबा घुमावदार पहाडी रास्ता छोटा और सुगम हो गया। अब दशरथ इस दुनिया में नहीं हैं पर वह रास्ता आज भी हमें उनके जिद्दी और जुझारू व्यक्तित्व की याद दिलाता है। उनकी दृढ इच्छाशक्ति को सम्मान देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने कर्मचारियों के लिए दशरथ मांझी पुरस्कार की शुरुआत की है।
गुस्सा भी होता है अच्छा
जिद की तरह गुस्सा भी हमारी नकारात्मक भावनाओं में शुमार होता है और इन दोनों का बडा ही करीबी रिश्ता है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, अगर किसी दुर्भावना की वजह से गुस्सा आए और कोई किसी को नुकसान पहुंचाने की जिद करे तो निश्चित रूप से यह खतरनाक  प्रवृत्ति है। इससे इंसान केवल दूसरों का ही नहीं, बल्कि अपना भी अहित कर रहा होता है। हमारी मानसिक संरचना में ये दोनों भावनाएं बिजली की तरह काम करती हैं। अगर सही जगह पर इनका इस्तेमाल किया जाए तो चारों ओर रौशनी फैल सकती है। अगर इनका गलत इस्तेमाल हो तो पल भर में जल कर सब कुछ खाक  हो सकता है। यहां असली मुद्दा नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक ढंग से चैनलाइज  करने का है। अगर बच्चा अपनी मनपसंद चीज लेने की जिद करता है तो बडों को हमेशा उसकी जिद पूरी नहीं करनी चाहिए, बल्कि उससे यह वादा लेना चाहिए कि तुम परीक्षा में अच्छे मा‌र्क्स  लाओ तो तुम्हारी मांग जरूर पूरी की जाएगी। इससे उसे यह एहसास होगा कि बिना मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता और उसकी जिद पढाई की ओर रुख कर लेगी।
गुस्से के सकारात्मक इस्तेमाल के संदर्भ में चिपको आंदोलन के अग्रणी नेता सुंदर लाल बहुगुणा द्वारा कही गई एक बात बरबस याद आ जाती है, पेड काटने वाले लोगों को देखकर मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है। इसलिए मैंने यह संकल्प लिया है कि इतने पेड लाऊंगा कि काटने वाले भले ही थक जाएं, फिर भी हमारी धरती हमेशा हरी-भरी बनी रहे। सच, लाचारी भरी शांति से तो ऐसा गुस्सा हजार गुना बेहतर है, जिससे देश और समाज का भला हो।
दिल पर लगी तो बात बनी
कई बार हमें दुख पहुंचाने वाले या हमारे साथ बुरा बर्ताव करने वाले लोग अनजाने में ही सही, लेकिन हमारी भलाई कर जाते हैं। इस संबंध में डॉ. अशुम  गुप्ता आगे कहती हैं, कई बार दूसरों द्वारा कही गई कडवी बात हमारे लिए शॉक ट्रीटमेंट का काम करती है। ऐसी बातें सुनकर हमारा सोया हुआ जमीर जाग उठता है। फिर हम कई ऐसे मुश्किल काम भी कर गुजरते हैं, जिनके बारे में आमतौर पर सोचना भी असंभव लगता है। जरा सोचिए कि अगर तुलसीदास को अपनी पत्नी रत्नावली की बात दिल पर न लगी होती तो आज हिंदी साहित्य श्रीरामचरितमानस जैसे महाकाव्य से वंचित रह जाता। अगर दक्षिण अफ्रीका के पीट्मेरीज्बर्ग स्टेशन पर उस टीटी ने बैरिस्टर मोहनदास करमचंद  गांधी का सामान ट्रेन की फ‌र्स्ट क्लास की बोगी से बाहर न फेंका होता तो शायद आज भारत का इतिहास कुछ और ही होता।
जब बात हो अपनों की
जिद के साथ कहीं न कहीं अपनों का प्यार और उनकी भावनाएं भी जुडी होती हैं। दिल्ली की मैरी बरुआ का इकलौता बेटा ऑटिज्म से पीडित था। वह दिन-रात उसकी देखभाल में जुटी रहतीं। वह कहती हैं, मेरे लिए मेरा बेटा ही सब कुछ है। मैंने उसकी खातिर ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग देने का स्पेशल कोर्स किया। उसी दौरान मुझे यह खयाल आया कि सिर्फ मेरा ही बेटा क्यों.? ऐसे दूसरे बच्चों को भी ट्रेनिंग देकर मैं उन्हें कम से कम इस लायक तो बना दूं कि ये अपने रोजमर्रा के काम खुद करने में सक्षम हों और बडे होने के बाद सामान्य जिंदगी जी सकें। तभी से मैंने ऑटिज्म  से पीडित दूसरे बच्चों की देखभाल शुरू कर दी। इससे मेरे मन को बहुत सुकून  मिलता है। अब जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है, बल्कि ऐसा महसूस होता है कि ईश्वर ने मुझे इस काबिल समझा, तभी तो ऐसे बच्चों की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है।
फर्क चश्मे का
अकसर हम लोगों के अडियल व्यवहार को नापसंद करते हैं। आकांक्षा जैन एक निजी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हैं। इस संबंध में उनका कहना हैं, शुरू से मेरी आदत रही है कि अगर मैंने एक बार कोई काम ठान लिया तो चाहे बीच कितनी ही बाधाएं क्यों न आएं मैं उसे पूरा करके ही दम लेती हूं। मेरी इस आदत की वजह से लोग मुझसे नाराज भी होते हैं, पर बाद में जब वह काम अच्छी तरह पूरा हो जाता है तो उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है। अडियल या परफेक्शनिस्ट  होने में कोई बुराई नहीं है। अगर हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो तो हमें लोगों के जिद्दी व्यवहार का अच्छा पहलू भी नजर आएगा। अगर ऐसा न हो तो दूसरों के हर अच्छे व्यवहार में भी बुराई नजर आएगी।
सामाजिक स्वीकृति में दिक्कत
इस संबंध में समाजशास्त्री डॉ. शैलजा  मेनन  कहती हैं, किसी भी समाज में हमेशा वही व्यवहार स्वीकार्य होता है, जिससे सामने वाले व्यक्ति को कोई असहमति न हो। अगर कोई व्यक्ति लीक से हट कर कुछ भी करना चाहता है तो उसके आसपास के लोग उसे सहजता से स्वीकार नहीं पाते और वे ऐसे व्यक्ति को शक की निगाहों से देखते हैं।
अपनी ही धुन में लगे रहने वाले ऐसे क्रिएटिव  लोगों को शुरुआती दौर में अकसर आलोचना का सामना करना पडता है, लेकिन उन पर नकारात्मकबातों का कोई असर नहीं होता। बाद में दुनिया को उनकी काबिलीयत की पहचान होती है और लोग उन्हें सुपर हीरो बना देते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
महान इटैलियन वैज्ञानिक गैलीलियो  की जिंदगी इसकी सबसे बडी मिसाल है। उन्होंने उस पारंपरिक धारणा का खंडन किया था कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है। उन्होंने ही सबसे पहले इस बात की खोज की थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। आज उसी वेटिकन सिटी के चर्च में उनकी मूर्ति लगाई जा रही है, जहां 400  साल पहले उनकी इस खोज  को धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ  बताते हुए उन्हें यातना शिविर में बंद किया गया था और घोर शारीरिक-मानसिक यातनाएं दी गई थीं। अब सदियों बाद अपने इस प्रयास से चर्च अपनी उस पुरानी गलती का पश्चात्ताप करना चाहता है।
सामाजिक स्वीकृति में दिक्कत
जिद्दी और जोशीले लोगों को चुनौतियां स्वीकारना बहुत अच्छा लगता है। इस संबंध में सॉफ्टवेयर इंजीनियर सिद्धार्थ शर्मा का कहना है, हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हमारे पिता बेहद मामूली सी नौकरी करते थे। हम छह भाई-बहनों की परवरिश बहुत मुश्किल थी। मैं इंजीनियर बनना चाहता था, पर मुझे मालूम था कि इसके लिए पिताजी पैसे नहीं जुटा पाएंगे। इसलिए जी जान से पढाई में जुटा रहता। मैंने ठान लिया था कि मैं केवल मेहनत के बल पर अपना सपना साकार करूंगा। बिना किसी कोचिंग के आईआईटी  के लिए मेरा चयन  हो गया। आगे की पढाई का खर्च  मैंने खुद ट्यूशन करके उठाया। आज इंजीनियर बनने से कहीं ज्यादा, मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने संसाधनों की कमी के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में भी कामयाबी हासिल की है। अगर कामयाबी ज्यादा  मुश्किलें उठाने के बाद मिले तो उसका मजा दोगुना हो जाता है।

Monday 15 April 2013

Fwd: SSC CGL Exam 2013 Postponed New Exam Dates 2013

Subject: New Exam Dates of SSC CGL Exam 2013


The Combined Graduate Level Examination 2013 scheduled to be held on 14th April 2013 and 21st April 2013. As the Government has declared a closed holiday on account of the Birth Anniversary of Dr. B.R. Ambedkar, the examination scheduled on 14th April 2013 has been postponed. Revised Admission Certificates may be downloaded from the website i.e. sscnr.net.in on or after 21.04.2013.


This Exam will be conducted on 28 April 2013.  But the Exam which was on 21 April 2013, it will not be change. For more details of SSC CGL Exam 2013, you can visit our web portal which is recruitmentresult.com.  Following details are mention below for CGL Exam 2013:


Important date
Postponed new Exam Date: 14 April 2013 replace 28 April 2013
Same Exam Date: 21 April 2013 (No change)
Note: You may visit following official Link:
Important Links: